केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने गिर, कंकरेज, साहीवाल, अंगोल आदि देशी पशुओं की नस्लों की शुद्ध किस्मों को संरक्षण प्रदान करने के लिए भारत की पहली एकल पॉलीमॉर्फिज्म (एसएनपी) आधारित चिप "इंडिगऊ" का शुभारंभ किया
केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर), पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज गिर, कंकरेज, साहीवाल, अंगोल आदि देशी पशुओं की नस्लों के शुद्ध किस्मों को संरक्षण प्रदान करने के लिए भारत की पहली एकल पॉलीमॉर्फिज्म (एसएनपी) आधारित चिप "इंडिगऊ" का शुभारंभ किया।
इस स्वदेशी चिप को जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी (एनएआईबी), हैदराबाद के वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के द्वारा विकसित किया गया है। इस अवसर पर डीबीटी की सचिव, डॉ. रेणु स्वरूप, एनआईएबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक और डीबीटी के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
अपने संबोधन में, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह तीन स्तर पर मनाया जाने वाला उत्सव है-भारत के गाय और मवेशियों के लिए उत्सव, भारत के वैज्ञानिकों की क्षमता का प्रदर्शन करने वाला उत्सव और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत वाले दृष्टिकोण का उत्सव है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हमेशा ही समाज के सभी वर्गों के लिए "ईज ऑफ लिविंग" के लिए वैज्ञानिक ज्ञान और नवाचारों को लागू करने पर बल दिया गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इंडिगऊ पूर्ण रूप से स्वदेशी और दुनिया की सबसे बड़ी पशु चिप है। इसमें 11,496 मार्कर (एसएनपी) हैं जो कि अमेरिका और ब्रिटेन की नस्लों के लिए रखे गए 777के इलुमिना चिप की तुलना में बहुत ज्यादा हैं। मंत्री ने कहा कि हमारी अपनी देशी गायों के लिए तैयार किया गया यह चिप आत्मनिर्भर भारत की दिशा के लिए एक शानदार उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह चिप बेहतर पात्रों के साथ हमारी अपनी नस्लों के संरक्षण के लक्ष्य की प्राप्ति करते हुए 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने में सहयोग प्रदान करने वाले सरकारी योजनाओं में व्यावहारिक रूप से उपयोगी साबित होगा। उन्होंने इस बात पर गर्वान्वित महसूस किया कि डीबीटी और एनआईएबी जैसे विभागों के द्वारा भी किसानों के कल्याण और आय को बढ़ावा देनें में योगदान प्रदान किया जा रहा है। इस अवसर पर मंत्री ने दो पुस्तिकाओं का भी लोकार्पण भी किया।
इस अवसर पर डीबीटी की सचिव, डॉ. रेणु स्वरूप ने इंडिगऊ चिप जारी करने के लिए केंद्रीय मंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया और इस उपलब्धि के लिए एनएआईबी को बधाई भी दी। डॉ. स्वरूप ने यह भी बताया कि डीबीटी अन्य एजेंसियों जैसे एनडीडीबी, डीएएचडीएफ, आईसीएआर आदि की मदद से इस तकनीक को इस क्षेत्र में लागू करने के प्रति बहुत जागरूक है। फेनोटाइपिक और जेनोटिपिक सहसंबंध उत्पन्न करने में इस चिप के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए,एनआईएबी ने नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) के साथ सहयोगात्मक समझौता पर हस्ताक्षर किया है।
चूंकि एनडीडीबी फेनोटाइपिक रिकॉर्ड के संग्रह के क्षेत्र में अच्छे प्रकार से संगठित उपस्थिति प्रदान कर रही है, इसलिए एनआईएबी और एनडीडीबी किसी भी महत्वपूर्ण विशेषताओं का पता लगाने के लिए कम घनत्व वाले एसएनपी चिप के लिए जानकारी प्रदान करने हेतु इस शोध की शुरूआत करने जा रहा है जो कि एक दूसरे के पूरक हैं, जैसे कि उच्च दूध उपज या हीट टॉलरेंस आदि। अंततः इससे माध्यम से भारतीय मवेशियों की पात्र उत्पादकता वाले अभिजात वर्ग का चयन करने और उसमें सुधार करने में सहायता प्राप्त होगी।
एनआईएबी द्वारा अपने एसएनपी चिप्स को डिजाइन करने और निर्माण करने के लिए भारत के अंदर ही क्षमता विकसित करने के लिए निजी उद्योगों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किया गया है। शुरुआती दिनों में यह हो सकता है कि ये बहुत कम घनत्व वाले एसएनपी चिप ही बन सकें, लेकिन धीरे-धीरे इस तकनीक को बड़े चिप के लिए और भी मजबूती प्रदान किया जा सकता है, जिसके माध्यम से इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
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