देश के रक्षामंत्री श्रीमान राजनाथ सिंह जी, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी हिमाचल न छोकरो अनुराग ठाकुर, हिमाचल सरकार के मंत्रीगण, अन्य जनप्रतिनिधिगण, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत जी, आर्मी चीफ, रक्षा मंत्रालय बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन से जुड़े सभी साथी और हिमाचल प्रदेश के मेरे भाइयों और बहनों।
आज का दिन बहुत ऐतिहासि क है। आज सिर्फ अटल जी का ही सपना नहीं पूरा हुआ है, आज हिमाचल प्रदेश के करोड़ों लोगों का भी दशकों पुराना इंतजार खत्म हुआ है।
मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि आज मुझे अटल टनल के लोकार्पण का अवसर मिला है। और जैसा अभी राजनाथ जी ने बताया, मैं यहां संगठन का काम देखता था, यहां के पहाड़ों, यहां कि वादियों में अपना बहुत ही उत्तम समय बिताता था और जब अटल जी मनाली में आकर रहते थे तो अक्सर उनके पास बैठना, गपशप करना। और मैं और धूमल जी एक दिन चाय पीते-पीते इस विषय को बड़े आग्रह से उनके सामने रख रहे थे। और जैसा अटल जी की विशेषता थी, वो बड़े आंखें खोल करके हमें गहराई से पढ़ रहे थे कि हम क्या कह रहे हैं। वो मुंडी हिला देते थे कि हां भई। लेकिन आखिरकार जिस बात को लेकर मैं और धूमल जी उनसे लगे रहते थे वो सुझाव अटलजी का सपना बन गया संकल्प बन गया और आज हम उसे एक सिद्धि के रूप में अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं। इससे जीवन का कितना बड़ा संतोष हो सकता है, आप कल्पना कर सकते हैं।
कुछ मिनट पहले हम सबने एक मूवी भी देखी और मैंने वहां एक पिक्चर गैलरी भी देखी- The making of Atal Tunnel. अक्सर लोकार्पण की चकाचौंध में वो लोग कहीं पीछे रह जाते हैं जिनके परिश्रम से ये सब संभव हुआ है। अभेद्य पीर पांजाल उसको भेदकर एक बहुत कठिन संकल्प को आज पूरा किया गया है। इस महायज्ञ में अपना पसीना बहाने वाले, अपनी जान जोखिम में डालने वाले मेहनतकश जवानों को, इंजीनियरों को, सभी मजदूर भाई-बहनों को आज मैं आदरपूर्वक नमन करता हूं।
साथियों, अटल टनल हिमाचल प्रदेश के एक बड़े हिस्से के साथ-साथ नए केंद्र शासित प्रदेश लेह-लद्दाख की भी लाइफ लाइन बनने वाला है। अब सही मायनों में हिमाचल प्रदेश का ये बड़ा क्षेत्र और लेह-लद्दाख देश के बाकी हिस्सों से हमेशा जुड़े रहेंगे, प्रगति पथ पर तेजी से आगे बढ़ेंगे।
इस टनल से मनाली और केलॉन्ग के बीच की दूरी 3-4 घंटे कम हो जाएगी। पहाड़ के मेरे भाई-बहन समझ सकते हैं कि पहाड़ पर 3-4 घंटे की दूरी कम होने का मतलब क्या होता है।
साथियो, लेह-लद्दाख के किसानों, बागवानों, युवाओं के लिए भी अब देश की राजधानी दिल्ली और दूसरे बाजार तक उनकी पहुंच आसान हो जाएगी। उनका जोखिम भी कम हो जाएगा। यही नहीं, ये टनल देवधरा हिमाचल और बुद्ध परम्परा के उस जुड़ाव को भी सशक्त करने वाली है जो भारत से निकलकर आज पूरी दुनिया को नई राह, नई रोशनी दिखा रही है। इसके लिए हिमाचल और लेह-लद्दाख के सभी साथियों को बहुत-बहुत बधाई।
साथियों, अटल टनल भारत के बॉर्डर infrastructure को भी नई ताकत देने वाली है। ये विश्वस्तरीय बॉर्डर connectivity का जीता-जागता प्रमाण है। हिमालय का ये हिस्सा हो, पश्चिम भारत में रेगिस्तान का विस्तार हो या फिर दक्षिण व पूर्वी भारत का तटीय इलाका, ये देश की सुरक्षा और समृद्धि, दोनों के बहुत बड़े संसाधन हैं। हमेशा से इन क्षेत्रों के संतुलित और सम्पूर्ण विकास को लेकर यहां के infrastructure को बेहतर बनाने की मांग उठती रही है। लेकिन लंबे समय तक हमारे यहां बॉर्डर से जुड़े infrastructure के प्रोजेक्ट या तो प्लानिंग की स्टेज से बाहर ही नहीं निकल पाए या जो निकले वो अटक गए, लटक गए, भटक गए। अटल टनल के साथ भी कभी-कभी तो कुछ ऐसा महसूस भी हुआ है।
साल 2002 में अटल जी ने इस टनल के लिए अप्रोच रोड का शिलान्यास किया था। अटल जी की सरकार जाने के बाद, जैसे इस काम को भी भुला दिया गया। हालत ये थी कि साल 2013-14 तक टनल के लिए सिर्फ 1300 मीटर यानी डेढ़ किलोमीटर से भी कम काम हो पाया था।
एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस रफ्तार से अटल टनल का काम उस समय हो रहा था, अगर उसी रफ्तार से काम चला होता तो ये सुरंग साल 2040 में जा करके शायद पूरी होती। आप कल्पना करिए, आपकी आज जो उम्र है, उसमें 20 वर्ष और जोड़ लीजिए, तब जाकर लोगों के जीवन में ये दिवस आता, उनका सपना पूरा होता।
जब विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ना हो, जब देश के लोगों के विकास की प्रबल इच्छा हो, तो रफ्तार बढ़ानी ही पड़ती है। अटल टनल के काम में भी 2014 के बाद, अभूतपूर्व तेजी लाई गई। बीआरओ के सामने आने वाली हर अड़चन को हल किया गया।
नतीजा ये हुआ कि जहां हर साल पहले 300 मीटर सुरंग बन रही थी, उसकी गति बढ़कर 1400 मीटर प्रति वर्ष हो गई। सिर्फ 6 साल में हमने 26 साल का काम पूरा कर लिया।
साथियों, infrastructure के इतने अहम और बड़े प्रोजेक्ट के निर्माण में देरी से देश का हर तरह से नुकसान होता है। इससे लोगों को सुविधा मिलने में तो देरी होती ही है, इसका खामियाजा देश को आर्थिक स्तर पर उठाना पड़ता।
साल 2005 में ये आकलन किया गया था, ये टनल लगभग साढ़े नौ सो करोड़ रुपये में तैयार हो जाएगी लेकिन लगातार होती देरी के कारण आज ये तीन गुना से भी ज्यादा यानी करीब-करीब 3200 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने के बाद पूरी हो पाई है। कल्पना कीजिए कि अगर 20 साल और लग जाते तब क्या स्थिति होती।
साथियो, connectivity का देश के विकास से सीधा संबंध होता है। ज्यादा से ज्यादा connectivity यानी उतना ही तेज विकास। खासकर बॉर्डर एरिया में तो connectivity सीधे-सीधे देश की रक्षा जरूरतों से जुड़ी होती है। लेकिन इसे लेकर जिस तरह की गंभीरता थी और उसकी गंभीरता की आवश्यकता थी, जिस तरह की राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी, दुर्भाग्य से वैसी दिखाई नहीं गई।
अटल टनल की तरह ही अनेक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स के साथ ऐसा ही व्यवहार किया गया। लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी के रूप में सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण एयर स्ट्रिप 40-50 साल तक बंद रही। क्या मजबूरी थी, क्या दबाव था, मैं इसके विस्तार में जाना चाहता हूं। इसके बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है बहुत कुछ लिखा जा चुका है। लेकिन सच्चाई यही है कि दौलत बेग ओल्डी की एयर स्ट्रिप वायुसेना के अपने इरादों की वजह से शुरू हो पाई, उसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति कहीं नजर नहीं आई।
साथियों, मैं ऐसे दर्जनों प्रोजेक्ट गिना सकता हूं जो सामरिक दृष्टि से और सुविधा की दृष्टि से भले ही कितने भी महत्वपूर्ण रहे हों, लेकिन वर्षों तक नजरअंदाज किए गए।
मुझे याद है मैं करीब दो साल पहले अटल जी के जन्मदिन के अवसर पर असम में था। वहां पर भारत के सबसे लंबे रेल रोड ब्रिज ‘बॉगीबील पुल’ को देश को समर्पित करने का अवसर मुझे मिला था। ये पुल आज नॉर्थ-ईस्ट और अरुणाचल प्रदेश से connectivity का बहुत बड़ा माध्यम है। बॉगीबील ब्रिज पर भी अटल जी की सरकार के समय ही काम शुरू हुआ था, लेकिन उनकी सरकार जाने के बाद फिर इस पुल का काम सुस्त हो गया। साल 2014 के बाद इस काम ने भी गति पकड़ी और चार साल के भीतर-भीतर इस पुल का काम पूरा कर दिया गया।
अटल जी के साथ ही एक और पुल का नाम जुड़ा है-कोसी महासेतु का। बिहार में मिथिलांचल के दो हिस्सों को जोड़ने वाले कोसी महासेतु का शिलान्यास भी अटल जी ने ही किया था। लेकिन इसका काम भी उलझा रहा, अटका रहा।
2014 में हमारी सरकार आने के बाद हमने कोसी महासेतु का काम भी तेज करवाया। अब से कुछ दिन पहले ही कोसी महासेतु का भी लोकार्पण किया जा चुका है।
साथियों, देश के करीब-करीब हर हिस्से में connectivity के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स का यही हाल रहा है। लेकिन अब ये स्थिति बदल रही है और बहुत तेजी के साथ बदल रही है। बीते 6 वर्षों में इस दिशा में अभूतपूर्व प्रयास किया गया है। विशेष रूप से Border Infrastructure के विकास के लिए पूरी ताकत लगा दी गई है।
हिमालय क्षेत्र में, चाहे वो हिमाचल हो, जम्मू कश्मीर हो, कारगिल-लेह-लद्दाख हो, उत्तराखंड हो, सिक्किम हो, अरुणाचल प्रदेश हो, दर्जनों प्रोजेक्ट पूरे किए जा चुके हैं और अनेकों प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम चल रहा है। सड़क बनाने का काम हो, पुल बनाने का काम हो, सुरंग बनाने का काम हो, इतने बड़े स्तर पर देश में इन क्षेत्रों में पहले कभी काम नहीं हुआ।
इसका बहुत बड़ा लाभ सामान्य जनों के साथ ही हमारे फौजी भाई-बहनों को भी हो रहा है। सर्दी के मौसम में उन तक रसद पहुंचाना हो, उनकी रक्षा से जुड़ा साजो-सामान हो, वो आसानी से पेट्रोलिंग कर सकें, इसके लिए सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है।
साथियों, देश की रक्षा जरूरतों, देश की रक्षा करने वालों की जरूरतों का ध्यान रखना, उनके हितों का ध्यान रखना हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।
हिमाचल प्रदेश के हमारे भाई-बहनों को आज भी याद है कि वन रैंक वन पेंशन को लेकर पहले की सरकारों का क्या बर्ताव था। चार दशकों तक हमारे पूर्व फौजी भाइयों को सिर्फ वायदे ही किए गए। कागजों में सिर्फ 500 करोड़ रुपए दिखाकर ये लोग कहते थे कि वन रैंक वन पेंशन लागू करेंगे। लेकिन किया फिर भी नहीं। आज वन रैंक-वन पेंशन का लाभ देश के लाखों पूर्व फौजियों को मिल रहा है। सिर्फ एरियर के तौर पर ही केंद्र सरकार ने लगभग 11 हजार करोड़ रुपए पूर्व फौजियों को दिए हैं।
हिमाचल प्रदेश के भी करीब-करीब एक लाख फौजी साथियों को इसका लाभ मिला है। हमारी सरकार के फैसले साक्षी हैं कि हमने जो फैसले किए वो हम लागू करके दिखाते हैं। देश हित से बड़ा, देश की रक्षा से बड़ा हमारे लिए और कुछ नहीं। लेकिन देश ने लंबे समय तक वो दौर भी देखा है जब देश के रक्षा हितों के साथ समझौता किया गया। देश की वायुसेना आधुनिक फाइटर प्लेन मांगती रही। वो लोग फाइल पर फाइल, कभी फाइल खोलते थे, कभी फाइल से खेलते थे।
गोला बारूद हो, आधुनिक रायफलें हों, बुलेटप्रूफ जैकेट्स हों, कड़ाके की ठंड में काम आने वाले उपकरण और अन्य सामान हों, सब कुछ ताक पर रख दिया गया था। एक समय था जब हमारी ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों की ताकत, अच्छे-अच्छों के होश उड़ा देती थी। लेकिन देश की आर्डिनेंस फैक्ट्रियों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया।
देश में स्वदेशी लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों के लिए HAL जैसी विश्वस्तरीय संस्था बनाई गई, लेकिन उसे भी मजबूत करने पर उतना ध्यान नहीं दिया गया। बरसों तक सत्ता में बैठे लोगों के स्वार्थ ने हमारी सैन्य क्षमताओं को मजबूत होने से रोका है, उसका नुकसान किया है।
जिस तेजस लड़ाकू विमान पर आज देश को गर्व है, उसे भी इन लोगों ने डिब्बे में बंद करने की तैयारी कर ली थी। ये थी इन लोगों की सच्चाई, ये है इन लोगों की सच्चाई।
साथियों, आज देश में ये स्थिति बदल रही है। देश में ही आधुनिक अस्त्र-शस्त्र बने, Make In India हथियार बनें, इसके लिए बड़े सुधार किए गए हैं। लंबे इंतज़ार के बाद चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की व्यवस्था अब हमारे सिस्टम का हिस्सा है।
इससे देश की सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार Procurement और Production दोनों में बेहतर समन्वय स्थापित हुआ है। अब अनेक ऐसे साजो-सामान हैं, जिनको विदेश से मंगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। वो सामान अब सिर्फ भारत के उद्योगों से ही खरीदना ज़रूरी कर दिया गया है।
साथियों, भारत में डिफेंस इंडस्ट्री में विदेशी निवेश और विदेशी तकनीक आ सके इसके लिए अब भारतीय संस्थानों को अनेक प्रकार के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। जैसे-जैसे भारत की वैश्विक भूमिका बदल रही है, हमें उसी तेज़ी से, उसी रफ्तार से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को, अपने आर्थिक और सामरिक सामर्थ्य को भी बढ़ाना है।
आत्मनिर्भर भारत का आत्मविश्वास आज जनमानस की सोच का हिस्सा बन चुका है। अटल टनल इसी आत्मविश्वास का प्रतीक है।
एक बार फिर मैं आप सभी को, हिमाचल प्रदेश को और लेह-लद्दाख के लाखों साथियों को बहुत-बहुत बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
हिमाचल पर मेरा कितना अधिकार है ये तो मैं नहीं कह सकता हूं लेकिन हिमाचल का मुझ पर बहुत अधिकार है। आज के इस कार्यक्रम में समय बहुत कम होने के बावजूद भी हमारे हिमाचल के प्यार ने मुझ पर इतना दबाव डाल दिया, तीन कार्यक्रम बना दिए। इसके बाद मुझे और दो कार्यक्रम में बहुत ही कम समय में बोलना है। और इसलिए मैं यहां विस्तार से न बोलते हुए कुछ बातें, दो और कार्यक्रम में भी बोलने वाला हूं।
लेकिन कुछ सुझाव मैं यहां जरूर देना चाहता हूं। मेरे ये सुझाव भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के लिए भी हैं, भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के लिए भी हैं और BRO के लिए स्पेशल भी हैं- एक ये टनल का काम अपने-आप में इंजीनियरिंग की दृष्टि से, वर्क कल्चर की दृष्टि से यूनिक है। पिछले इतने वर्षों में जबसे इसका डिजाइनिंग का काम शुरू हुआ, कागज पर लिखना शुरू हुआ; तब से लेकर अब तक। अगर 1000-1500 जगहें ऐसी छांटें, मजदूर भी हो सकता है और टॉप व्यक्ति भी हो सकते हैं। उसने जो काम किया है, उसका अपना जो अनुभव है उसको वो अपनी भाषा में लिखें। एक 1500 लोग पूरी कोशिश को अगर लिखेंगे, कब क्या हुआ, कैसे हुआ, एक ऐसा documentation होगा जिसमें human touch होगा। जब हो रहा था तब वो क्या सोचता था कभी तकलीफ आई तो उसको क्या लगा। एक अच्छा documentation, मैं academic documentation नहीं कह रहा, ये वो documentationहै जिसमें human touch है। जिसमें मजदूर काम करता होगा, कुछ दिन खाना नहीं पहुंचा होगा, कैसे काम किया होगा, उस बात का भी बड़ा महत्व होता है। कभी कोई सामान पहुंचने वाला होगा, बर्फ के कारण पहुंचा नहीं होगा, कैसे काम किया होगा।
कभी कोई इंजीनियर चैलेंज आया होगा, कैसे किया होगा। मैं चाहूंगा कि कम से कम 1500 लोग, हर स्तर पर काम करने वाले 5 पेज, 6 पेज, 10 पेज, अपना अनुभव लिखें। किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदारी दीजिए फिर उसको थोड़ा ठीक-ठाक करके लैंग्वेज बेहतर करके documentation करा दीजिए और छापने की जरूरत नहीं है डिजिटल ही बना देंगे तो भी चलेगा।
दूसरा मेरा शिक्षा मंत्रालय से आग्रह है कि हमारे देश में जितने भी technical और इंजीनियरिंग से जुड़ी Universities हैं उन Universities के बच्चों को केस स्टडी का काम दिया जाए। और हर वर्ष एक-एक University से आठ-दस बच्चों का बैच यहां आए, केस स्टडी की कैसे कल्पना हुई, कैसे बना, कैसे चुनौतियां आईं, कैसे रास्ते निकाले और दुनिया में सबसे ऊंची और सबसे लंबी जगह पर विश्व में नाम कमाने वाली इस टनल की Engineering knowledge हमारे देश के students को होनी ही चाहिए।
इतना ही नहीं, Globally भी मैं चाहूंगा MEA के लोग कुछ Universities को invite करें। वहां की Universities यहां केस स्टडी के लिए आएं। Project पर स्टडी करें। दुनिया के अंदर हमारी इस ताकत की पहचान होनी चाहिए। विश्व को हमारी ताकत का परिचय होना चाहिए। सीमित संसाधनों के बाद भी कैसे अद्भुत काम वर्तमान पीढ़ी के हमारे जवान कर सकते हैं इसका ज्ञान दुनिया को होना चाहिए।
और इसलिए मैं चाहूंगा कि रक्षा मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, MEA, BRO, सब मिल करके एक प्रकार से लगातार ये एजुकेशन का हिस्सा बन जाए, टनल काम का। हमारी एक पूरी नई पीढ़ी इससे तैयार हो जाएगी तो Tunnel Infrastructure बनेगा लेकिन मनुष्य निर्माण भी एक बहुत बड़ा काम होता है। हमारे उत्तम इंजीनियर बनाने का काम भी ये टनल कर सकती है और उस दिशा में भी हम काम करें।
मैं फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। और मैं उन जवानों का अभिनंदन करता हूं जिन्होंने इस काम को बखूबी निभाया है, बखूबी पूरा किया है और देश काम मान बढ़ाया है।
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