सावन मास का हिंदुओं में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है प्रकृति को हरियाली से भर देने वाला सावन मास साल के सबसे
सुहावने मास के रूप में जाना जाता है वर्षा के आगमन की साल भर प्रतीक्षा रहती है और सावन मास उस प्रतीक्षा को पूरी
करता है सावन मास में शिव जी की पूजा का अपना ही एक महत्वपूर्ण स्थान है सावन मास में शिव जी के अभिषेक के लिए
भक्त लोग साल भर प्रतीक्षा करते हैं सावन मास में आने वाली महत्वपूर्ण त्योहार में राखी आती है सावन मास की पूर्णिमा पर
रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है यह साल का सबसे बड़ा त्यौहार है और भाई और बहन के पवित्र रिश्ते को मनाया जाता
है सावन मास में पूर्णिमाके दिन रक्षाबंधन के अलावा एक अन्य त्योहार की विशेष मान्यता है लेकिन आजकल उसका प्रचलन
धीरे-धीरे कम होता जा रहाहै जबकि यह अति महत्वपूर्ण त्योहार है
इसे कहते हैं श्रावणी उपकर्म यह ब्राह्मणों द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है इस दिन ब्राह्मण लोग जो हवन पूजा पाठ करते हैं
वह अपने यजमानो के लिए नहीं स्वय के लिए अपनी आत्मा सिद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं इस दिन जनेऊ
की पूजा होती है और साल भर के लिए जनेऊ तैयार की जाती है
जनेऊ पूजन की विधि इस दिन प्रातः काल में अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करने के बाद फिर नई लाई
गई जनेऊ की पूजा करने की विधि है जनेऊ के गांठ में माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा स्थित होते हैं जनेऊ के धागों में सप्त
ऋषि का निवास माना जाता है सप्त ऋषि हिंदू धर्म के सबसे बड़े ऋषि में माने जाते हैं सप्त ऋषि और ब्रह्मा भगवान की पूजन
के बाद नदी सरोवर में खड़े होकर ब्रह्मा करणी संपन्न होती है इस प्रकार की गई पूजा में से एक जनेऊ पहन लेते हैं बाकी की
जगह सुरक्षित रूप से रख लेते हैं कि वर्ष पर जनेऊ की आवश्यकता हो तो उसे लेकर जनेऊ पहनी जाती है इस प्रकार न्यू
पूजन की विधि है
श्रावणी छुपाकर में तीन महत्वपूर्ण बातें आती है पहली बात प्रायश्चित फिर संस्कार और स्वाध्याय
प्रायश्चित के रूप में हिमाद्रि स्नान संकल्प है इसमें गाय के दूध दही घी गोबर गोमूत्र पवित्र कुशा से स्नान कर का वर्ष भर में की
है पाप कर्मों का प्रायश्चित करते हैं इसके बाद संस्कार के रूप में व्यक्ति पुराना उतार कर नया यज्ञोपवित धारण
करते हैं तीसरे पक्ष स्वाध्याय क्या है इसमें सावित्री ब्रह्मा श्रद्धा मेघा प्रज्ञा स्मृति सदस्य पति अनुमति छंद और ऋषि को भी की
आहुति दी जाती है जौ के आटे में दही मिलाकर वेद के मंत्रों से आहुति दी जाती है
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों व द्विजों का सबसे बड़ा पर्व है।
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