<राम प्रसाद बिस्मिल > यमुना नदी अंदर ही अंदर तैर कर पार कर ग्रेटर नोएडा के जंगलों में अपना अज्ञातवास पूरा किया था>

 



 


<मेरा रंग दे बसंती चोला  देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है>


 


राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के रूप में जाने जाते हैं राम प्रसाद बिस्मिल भगत सिंह राजगुरु


सुखदेव चंद्रशेखर आजाद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों के गुरु के रूप में जाने जाते हैं भगत सिंह ने कहीं जगह यह बात कही


है कि राम प्रसाद बिस्मिल के आदर्शों पर चलकर वह देश भक्ति की राह में आए हैं राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897


में उत्तर प्रदेश के sahajahapur  जिले में हुआ उनकी माता का नाम moolarani और पिता का नाम murlidhar गया था


राम प्रसाद बिस्मिल जी के माता पिता भगवान राम के बड़े उपासक थे इसलिए उनका नाम राम प्रसाद रखा गया बचपन में राम


प्रसाद बिस्मिल जी पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं थे उनकी रूचि खेल में और शैतानी करने में ज्यादा रहते थे बचपन में कई


बार अपने पिता के पैसे भी चुरा लिया करते थे लेकिन जैसे-जैसे वह समझ आई उन्हें यह सारे काम करने छोड़ दिए


 


 जीवन में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन  तब आया जब वह  आर्य समाज के संपर्क में आए यहां पर वह स्वामी somdev के साथ


राजनीतिक विषयों पर खुली चर्चा करके उनके मन में देश प्रेम की भावना जागृत हुई लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन के समय


उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पूरी लखनऊ शहर में शोभायात्रा निकाली तो सभी लोगों का ध्यान उनकी ओर गया


 


एक बार पुलिस मुठभेड़ के दौरान बिस्मिल ने यमुना नदी में छलांग लगा दी और पूरी की पूरी नदी पानी के अंदर ही अंदर


तैरकर पार कर ली और दूसरे किनारे पर ग्रेटर नोएडा जो आजकल कहलाता है उस समय वहां घने जंगल हुआ करते थे वहां


पर वह निकले और  कई महीनों तक  निर्जन गेटर नोएडा के जंगलो  में घूम कर अपना अज्ञातवास पूरा किया


 


 रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने के लिए मातृ  देवी नामक एक संस्था का निर्माण किया


 क्रांतिकारी विचारधारा वाले नव युवकों ने एक नई पार्टी  हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक पार्टी का गठन करने का


निर्णय लिया इसमें  राम प्रसाद बिस्मिल आदि प्रमुख सदस्य शामिल हुए पार्टी के कार्य हेतु धन की आवश्यकता पूरी करना उस


समय बहुत ज्यादा जरूरी था जिसके लिए बिस्मिल ने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में


लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर ट्रेन रोककर 9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना लूट लिया


 


 26 सितम्बर 1925 को बिस्मिल के साथ पूरे देश में 40 से भी अधिक लोगों को ‘काकोरी डकैती’ मामले में गिरफ्तार कर लिया


गया।


रामप्रसाद बिस्मिल को अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गयी। उन्हें 19


दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी।


 उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया।


 


                                   मेरा रंग दे बसन्ती चोला.


मेरा रंग दे बसन्ती चोला....
हो मेरा रंग दे बसन्ती चोला....
इसी रंग में रंग के शिवा ने मां का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।
मेरा रंग दे बसन्ती चोला....
हो मेरा रंग दे बसन्ती चोला


भगत सिंह ने इस कविता में कुछ और लाइने जोड़ी


इसी रंग में बिस्मिल जी ने 'वन्दे-मातरम्' बोला,
यही रंग अशफाक को भाया उनका दिल भी डोला;
इसी रंग को हम मस्तों ने, हम मस्तों ने;
दूर फिरंगी को करने को, को करने को;
लहू में अपने घोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
माय! रँग दे बसन्ती चोला....
हो माय! रँग दे बसन्ती चोला....
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....


 


 


 


                          सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,


 


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,



देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है?


करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत



देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है



ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,



अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है।


वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां!



हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?



खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद



आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।


है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर



और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर



खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।


हाथ जिनमें हो जुनूँ, कटते नही तलवार से



सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से



और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।


हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न


जाँ हथेली पर लिये लो बढ़ चले हैं ये कदम



ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।


यूँ खड़ा मक़तल में कातिल कह रहा है बार-बार,


क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?



दिल में तूफानों की टोली और नसों में इंक़लाब


होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज



दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।


जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खून-ए-जुनूँ



क्या लड़े तूफाँ से जो कश्ती-ए-साहिल में है


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।


 


 


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