महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीद चंद्रशेखर आजाद वह नाम से जिनके नाम से अंग्रेज डर जाते थे चंद्रशेखर आजाद
भारत के प्रथम श्रेणी के स्वतंत्रा सेनानी कहे जाते हैं की तुलना महान भगत सिंह सुखदेव राजगुरु के बराबर की जाती है भारतीय
देश के युवा आज भी चंद्रशेखर आजाद को अपना आदर्श मानते हैं
चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा गांव में हुआ था आज उस गांव का नाम आजाद नगर के रूप
में जाना जाता है चंद्रशेखर आजाद जी बचपन से ही देशभक्त थे उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी माता का नाम
जगतानी देवी था और छोटी सी उम्र में ही चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो
गए दल में उनका नाम क्विकसिल्वर तय पाया गया क्योंकि वह काफी तेज थी पार्टी की ओर से धन एकत्रित करने के जितने भी
कार्य चंद्रशेखर आजाद ने बड़ी बखूबी निभाए
काकोरी ट्रेन डकैती और अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या जैसे क्रांतिकारी कार्य में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका बहुत
महत्वपूर्ण रही
चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही गांधी जी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित है वह मानते थे कि गांधीजी का साथ देने से देश को
अंग्रेजों से मुक्ति मिल सकती है इसलिए वह बचपन में गांधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए
क्रांतिकारी कार्य में शामिल हो गए इस कार्य में चंद्रशेखर आजाद गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें जब मजिस्ट्रेट के सामने पेश
किया गया तब उनसे उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मेरा नाम आजाद है पिता का नाम पूछने पर उन्होंने कहा कि
मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता है और मेरे घर का पता जेलखाना है उस समय चंद्रशेखर आजाद की उम्र काफी कम थी नाबालिक
होने के कारण उन्हें ज्यादा दंड नहीं दिया गया और 15 कोड़े माल मारने का आदेश हुआ हर कोड़े की मार पर वह वंदे
मातरम वंदे मातरम का उद्घोष करने लगे इसके पश्चात वह सार्वजनिक रूप से चंद्रशेखर आजाद के नाम से मशहूर हुए
चंद्रशेखर आजाद की जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन तब आया जब गांधी जी ने ऐसा योग आंदोलन को बंद कर दिया इससे
चंद्रशेखर आजाद को काफी निराशा हुई और वह क्रांतिकारी विचारधारा रखने वाले लोगों के संपर्क में आने की कोशिश करने
लगे इसी दौरान वह राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए राम प्रसाद बिस्मिल उस समय के एक महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता
सेनानी थे चंद्रशेखर आजाद बिस्मिल से बहुत प्रभावित हुए चंद्रशेखर आजाद कि देश के प्रति समर्पण और निष्ठा को पहचानने
के बाद बिस्मिल ने आजाद को अपनी संस्था हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य के रूप में शामिल कर लिया
चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ संस्था के लिए धन एकत्रित करते थे ज्यादातर अंग्रेजी सरकार पर लूट पर एकत्रित
किया जाता था
1925 में काकोरी कांड के फल स्वरुप अशफाक उल्ला खान राम प्रसाद बिस्मिल सहित कई प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों को
अंग्रेज सरकार द्वारा मृत्युदंड दे दिया गया इसके कारण क्रांति दल काफी कमजोर पड़ गया के बाद चंद्रशेखर आजाद ने इस
संस्था को पुनर्जीवित किया चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह सुखदेव राजगुरु के संपर्क में आए भगत सिंह के साथ मिलकर
चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत उत्तर भारत से खदेड़ने का हर संभव प्रयास किया
चंद्रशेखर आजाद ने मध्य प्रदेश मैं झांसी को अपना मुख्य क्षेत्र बनाया झांसी से 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में मैं अपने
साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे अचूक निशानेबाज चंद्रशेखर आजाद ने दूसरे क्रांतिकारियों को भी गोलीबारी
करना सिखाया यहां पर वह हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से रहा करते थे
1936 में चंद्रशेखर आजाद गणेश गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर नेहरू से मिलने
को कहा चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंदवन पहुंचे तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात नहीं मानी इस पर चंद्रशेखर
आजाद अपने साथी सुखदेव के साथ वहां से निकल आए और पास ही अल्फ्रेड पार्क में चले गए सुखदेव के साथ आगे की बात
करी रहे थे इतनी देर में ही पुलिस ने पार्क को चारों ओर से घेर लिया आजाद ने अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां
दागनी शुरू कर दी आजाद ने सुखदेव को सुरक्षित वहां से भगा दिया और खुद ही अंग्रेजों का सामना करने लगे दोनों ओर से
गोलीबारी हुई लेकिन एक गोली जब चंद्रशेखर आजाद के पिस्तौल में रह गई और उन्हें लगा कि अब मैं पुलिस का सामना नहीं
कर पाऊंगा या नहीं आएंगे इसी प्राण को निभाते हुए में 27 फरवरी 1931 को उन्होंने एक बलिदान कर दिया
चंद्रशेखर आजाद के प्रमुख वचन
जिस राष्ट्र में चरित्र खोया उसने सब कुछ खोया
मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा आजादी की लड़ाई में हथकड़ी लगाना बिल्कुल असंभव है एक
बार सरकार लगा चुकी अब तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे लेकिन जीवित रहते पुलिस बंदी नहीं बना सकती
chandrashekhar azad real name
Chandrashekhar Tiwari
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shiv
chandra shekhar azad death
डेथ ऑफ़ प्लेस -27 February 1931
चंद्रशेखर आज़ाद पार्क प्रयागराज
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